Sunday, 11 May 2014

माँ......

माँ......

मैं कल भी बच्चा था.. आज भी बच्चा हूँ
शायद ये वक़्त मुझसे बढ़ा हो गया है
कभी तेरे हाथों से खाता था खाना
आज वो खाना भी एक ज़माना हो गया है
नज़र नज़र निशान ख़ुदग़र्ज़ी के
शहर ये तरक्क़ी का...
गुमनाम आंसुओं का ठिकाना बन गया है
सुकून-ए-साँसों की नमीं सूखती तुझ बिन
क़दम लड़खड़ाते उम्र के इस पहर में
मोहब्बत मायूस होती जाती...
मुलाक़ातों के असर से.......
ज़र्रा-ज़र्रा दर्द की दास्ताँ कह रहा है
वो रंगत... वो आँचल... वो दुआएं...
बिखरने ना देती... बेचैनियों मे कभी
तू आदत मेरी... तू अमानत मेरी
रोज़ इन दूरियों को समझाउं कैसे
ख़ुशी की ख़बर ज़िन्दगी का बसर
सब तु हीं तो है....सब तु हीं तो है...
माँ......
मैं कल भी बच्चा था.. आज भी बच्चा हूँ
शायद ये वक़्त मुझसे बढ़ा हो गया है !!!

सत्या "नादाँ"