उसे इस क़दर गिरता देख
आँखों में चुभन सी होती है
इंतज़ार ने जो उम्मीद रखी थी
वो अब...
साँसों को घुटन सी लगती है
इश्क़.. इबादतत.. इम्तिहान..
क्या?? क्या?? ना लिया तुमने
शहर में शोर.. शोर.. शोर कर
क्या?? क्या?? ना किया तुमने
रोज़ एक ख़बर से निकल
दूसरे... में समा जाती थी
कभी कशिश कभी किरण
पल.. पल.. ना जाने!
कितने रूप दिखा जाती थी
आज तुम्हे भी मालुम है
इस मोहब्बत की मज़बूरी का आलम
जो ना तो....
मर पाती है ना मार पाती है
सिर्फ चीख़ ही चीख़
और सन्नाटे में पसरती जाती है...
शायद इसे अब भी भरोसा है
कि... "मुद्रा"
तुम ग़ैर होकर भी ग़ैर नहीं
सत्या "नादाँ"
आँखों में चुभन सी होती है
इंतज़ार ने जो उम्मीद रखी थी
वो अब...
साँसों को घुटन सी लगती है
इश्क़.. इबादतत.. इम्तिहान..
क्या?? क्या?? ना लिया तुमने
शहर में शोर.. शोर.. शोर कर
क्या?? क्या?? ना किया तुमने
रोज़ एक ख़बर से निकल
दूसरे... में समा जाती थी
कभी कशिश कभी किरण
पल.. पल.. ना जाने!
कितने रूप दिखा जाती थी
आज तुम्हे भी मालुम है
इस मोहब्बत की मज़बूरी का आलम
जो ना तो....
मर पाती है ना मार पाती है
सिर्फ चीख़ ही चीख़
और सन्नाटे में पसरती जाती है...
शायद इसे अब भी भरोसा है
कि... "मुद्रा"
तुम ग़ैर होकर भी ग़ैर नहीं
सत्या "नादाँ"